इबादियाह का इतिहास
ओमान के दो राजाओं ने अरब-जनजातियों को एक मंच पर इकट्ठा किया और ओमान को तीसरे खलीफा, उथमन बिन अफ़्फेन द्वारा बसरा के कब्जे में देने तक राजनीतिक सत्ता अल जुलान्दा राजवंश के हाथों में बनाई रखी । मुसलमानों के राज्यपालों की नियुक्ति करना - पहले अबू बकर, तो बाद में उमर बिन अल खत्ताब- जैसे ख़लीफ़ाओं का कर्तव्य था ।
ख़लीफ़ा अली और मुयावियाह के बीच खूनी टकराव ने फूट का बीज बोया जिससे सुन्नी और शिया के अलग अलग धर्म शास्त्र वाले मार्ग विकसित हुए। पहिले पहिले ओमान को उमय्यद शासन द्वारा काफी हद तक स्वतंत्र रखते हुए अब्द बिन अल जुलान्दा ने फैसला किया कि वह दोनों मार्गों में से किसी एक का भी अनुसरण नहीं करेगा । अंततः उसको जबर्दस्ती आत्मसमर्पण के लिए विवश करने के लिए उस पर सैनिक हमले होने लगे जिस के कारण अल जुलान्दा वंश को अफ्रीका में स्थानांतरित होने को मजबूर होना पड़ा ।
परिणाम स्वरूप उमय्यद आधिपत्य के विरुद्ध ओमान में राजनीतिक प्रतिरोध का एक केंद्र खड़ा हो गया जो कि समय के साथ साथ इबादिह धर्म शास्त्र की विचारधारा में विकसित हुआ ।